मोबाइल फ़ोन दूरसंचार के क्षेत्र में एक बड़ी क्रांति के रूप में सामने आया था जिसने सम्प्रेषण या कम्यूनीकेशन के मायनों को बदल के रख दिया था। इसी के साथ आया था सिम(SIM) कार्ड जिसने उपभोक्ता को अपनी सुविधा और पसंद के अनुसार सेवा चुनने की सहजता प्रदान की थी। सिम कार्ड का अर्थ है Subscriber Identification Module। इसी संचार क्रांति की श्रृंखला में नई कड़ी जो जुड़ी है वो है eSIM, जो सिम कार्ड की जगह लेने के लिए तैयार है। eSIM का अर्थ है embedded SIM, मतलब कि पहले से ही डाली गई सिम। eSIM एक प्रकार का सॉफ्टवेयर है जो मोबाइल फ़ोन के अन्दर अन्य सॉफ्टवेयरों की ही भांति या तो पहले से डला हुआ आता है या उसे फ़ोन में डाला जा सकता है। एक्टिवेट करने के बाद eSIM आपके चुने हुए नेटवर्क की सेवा प्रदान कर के ठीक उसी तरीके से काम करती है जैसे PVC प्लास्टिक की बनी हुई पारम्परिक सिम कार्ड करती है। जिस प्रकार पारम्परिक सिम कार्ड उपभोक्ता की यूनिक पहचान को अपने अन्दर रखता था उसी तरह eSIM उपभोक्ता की पहचान को डिजिटल फोर्मेट में अपने अंदर सुरक्षित रखता है।
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eSIM कैसे काम करता है {How eSIM works}
किसी भी सिम कार्ड को काम कराने के लिए उसे मोबाइल फ़ोन में मौजूद UICC, जिसे आम बोल चाल की भाषा में ‘सिम ट्रे’ कहा जाता है, में फँसा दिया जाता है। eSIM के लिए ऐसी किसी सिम ट्रे की आवश्यकता नहीं होती है। eSIM को किसी भी फ़ोन में एक्टिवेट करने के लिए फ़ोन में मौजूद eUICC की सहायता से eSIM Carrier इनस्टॉल कर लिया जाता है। एक बार eSIM Carrier फ़ोन में आ जाने पर इसमें ‘नेटवर्क औथेन्टिकेशन कुन्जी’ पैदा हो जाती है जिससे की eSIM प्लास्टिक की पारम्परिक सिम के जैसे ही काम करने लग जाती है। eSIM का कोई भौतिक रूप न होने के कारण इसे वर्चुअल सिम भी कहा जाता है।
eSIM क्या है
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eSIM के लाभ {Benefits of eSIM}
- eSIM की सारी प्रक्रिया डिजिटल होने के कारण यह उपभोक्ता के लिए पारम्परिक सिम कार्ड के मुकाबले सहज और तेज है।
- eSIM छोटे से छोटे और नवीनतम उपकरणों जैसे स्मार्ट वाच में भी काम करने की क्षमता रखने के कारण पारम्परिक सिम कार्ड के मुकाबले अधिक कारगर है।
- eSIM पारम्परिक सिमों के सामने कहीं तेज और आसानी से नेटवर्क सेवा या सर्विस प्रोवाइडर को बदल सकता है।
- न्यूनतम जगह घेरने के कारण eSIM और अधिक पतले और हल्के मोबाइल फ़ोनों के निर्माण करवाने में सहायक हैं।
- उपभोक्ता एक साथ कई eSIM प्रोफाइल को अपने मोबाइल फोन में रख सकता है जिनको वो अपनीसुविधा अनुसार जब चाहे बदल सकता है।
eSIM के नुकसान {Disadvantages of eSIM}
- eSIM एक प्रकार का सॉफ्टवेर होने के कारण एक फ़ोन से दूसरे फ़ोन में उतनी सहजता से नहीं बदला जा सकता जितनी आसानी से पारम्परिक सिम कार्ड को बदला जा सकता है।
- eSIM की समस्त प्रणाली डिजिटल होने के कारण इसे हैक किया जा सकता है जो उपभोक्ता के लिए काफ़ी खतरनाक है।
- eSIM डिजिटल होने के कारण इसे आसानी से ट्रैक किया जा सकता है जिससे eSIM उपभोक्ता की प्राइवेसी में भी दखल का कारण बन सकती है।
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निष्कर्ष
2010 के आसपास ही लन्दन स्थित संस्था GSMA ने eSIM बनाने के लिए प्रयत्न करने शुरू कर दिए थे। 2016 में तो eSIM को स्टैण्डर्ड ही कर दिया गया था। 2016 से लगातार eSIM का उपयोग बढ़ रहा है। नवीनतम उपकरणों के नए-नए वर्जन बाजार में आने से eSIM की मौजूदगी भी बाजार में बढ़ रही है। भारत में भारती एयरटेल और रिलायंश जिओ समेत लगभग सभी नेटवर्क सेवा प्रदान करने वाली कम्पनियां eSIM की सेवा बाजार में ला चुकी हैं। आशा है की जल्द ही eSIM पारम्परिक सिम की जगह बाजार में अपनी जगह ले लेगी।